विद्युत (intro.)
"विद्युत उस अज्ञात शक्ति का नाम है, जिसके कारण किसी वस्तु में अत्यन्त हल्के पदार्थों को आकर्षित करने का गुण आ जाता है।" यह परिभाषा सन् 1646 में सर थॉमस ब्रॉडन के द्वारा लिए गई थी ।
जिन वस्तुओं में हल्के पदार्थों को आकर्षित करने का गुण होता है, उन्हें आवेशित कहते हैं तथा शेष सभी को आवेशरहित कहते हैं। यदि वस्तु में उत्पन्न विद्युत को अन्य वस्तुओं में प्रवाहित न होने दिया जाये, तो इस विद्युत को स्थिर विद्युत कहते हैं। विद्युत की वह शाखा, जिसमें विरामावस्था में रहने वाले आवेश से आवेशित वस्तुओं के गुणों का अध्ययन किया जाता है, स्थिर विद्युत विज्ञान कहलाती है।
विद्युत क्षेत्र
किसी विद्युत आवेशित कण के चारों ओर उसके आवेश के कारण बनने वाला एक ऐसा क्षेत्र जिस में स्थित किसी अन्य आवेश को उस आवेशित कण द्वारा आकर्षण या प्रतिकर्षण का अनुभव होता है उस क्षेत्र को उस आवेशित कण का विद्युत क्षेत्र कहते हैं
विद्युत आवेश
लगभग 600 ई.पू. पहले यूनान के वैज्ञानिक थेल्स ने यह ज्ञात किया कि यदि अम्बर नामक पदार्थ को ऊन से रगड़ा जाये तो, उसमें बहुत हल्की वस्तुओं जैसे- कागज, रुई, लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़ों को अपनी ओर आकर्षित करने का गुण आ जाता है। इस क्रान्तिकारी खोज की ओर लगभग 2200 वर्ष तक किसी ने ध्यान नहीं दिया। बाद में लगभग सन् 1600 ई. में वैज्ञानिक गिलबर्ट ने यह दिखाया कि यह अद्भुत गुण केवल अम्बर में ही नहीं बल्कि लगभग सभी पदार्थों में थोड़ा-बहुत उपस्थित रहता है। उदाहरण के लिए, काँच की छड़ को रेशम से तथा एबोनाइट को फ्लालेन या बिल्ली की खाल से रगड़ा जाये तो उक्त दोनों छड़ें कागज, रुई, तिनकों को आकर्षित करने लगती हैं। चूँकि ग्रीक भाषा में अम्बर को इलेक्ट्रॉन कहते हैं।
समान प्रकृति के आवेश एक-दूसरे को प्रतिकर्षित एवं विपरीत प्रकृति के आवेश एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं।
विद्युत क्षेत्र रेखाएं
वैद्युत क्षेत्र में स्वतन्त्रतापूर्वक छोड़ा गया धन परीक्षण आवेश जिस मार्ग का अनुसरण करता है, उसे उस क्षेत्र की वैद्युत बल-रेखा कहते हैं।
विद्युत बल रेखाओं की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं
(i) विद्युत बल रेखा के किसी बिन्दु पर खींची गई स्पर्श रेखा उस बिन्दु पर परिणामी विद्युत क्षेत्र की दिशा व्यक्त करती है।
(ii) विद्युत बल रेखाएँ धन आवेश से ऋण आवेश की ओर चलती हैं।
(iii) दो बल रेखाएँ कभी एक-दूसरे को काटती नहीं हैं क्योंकि यदि वे काटेंगी तो कटान बिन्दु पर दोनों वक्रों पर खींची गई स्पर्श रेखाएँ दो परिणामी विद्युत क्षेत्र व्यक्त करेंगी जो कि सम्भव नहीं है। अतः बल रेखाओं का काटना भी सम्भव नहीं है।
(iv) विद्युत बल रेखाएँ खुले वक्र के रूप में होती हैं क्योंकि ये धनावेश से चलकर ॠणावेश पर समाप्त हो जाती हैं।
(v) विद्युत बल रेखाएँ जहाँ से चलती हैं और जहाँ पर मिलती हैं, दोनों जगह पृष्ठ के लम्बवत् होती हैं।
(vi) किसी स्थान पर विद्युत बल रेखाओं का पृष्ठ घनत्व (एकांक क्षेत्रफल से गुजरने वाली बल रेखाओं की संख्या) उस स्थान पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता के अनुपात में होता है अर्थात् बल रेखाएँ जितनी सघन होंगी, वहाँ विद्युत क्षेत्र उतना ही प्रबल होगा।
बल रेखाओं की संख्या के पदों में विद्युत क्षेत्र की तीव्रता की परिभाषा निम्न प्रकार की जा सकती है
किसी स्थान पर बल रेखाओं की दिशा के लम्बवत् एकांक क्षेत्रफल से गुजरने वाली बल रेखाओं की संख्या, उस स्थान पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता के तुल्य होती है ।
(vii) ये खिंची हुई लचकदार डोरी की तरह लम्बाई में सिकुड़ने का प्रयत्न करती हैं। इसी कारण विपरीत आवेशों में आकर्षण होता है।
(viii) ये अपनी लम्बाई की लम्ब दिशा में एक दूसरे से दूर रहने का प्रयास करती हैं। इसलिए समान आवेशों के मध्य प्रतिकर्षण होता है।
विद्युत द्विध्रुव
जब परिमाण में समान किंतु प्रकृति में विपरीत दो आवेश किसी अल्प दूरी पर रखे होते हैं तो वह विद्युत द्विध्रुव की स्थिति में होते हैं।
विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण
जब परिमाण में समान किंतु प्रकृति में विपरीत दो आवेश किसी अल्प दूरी पर रखे होते हैं तो वह विद्युत द्विध्रुव की स्थिति में होते हैं। किसी आवेश एवं दोनों आवेशों के मध्य दूरी का गुणनफल विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण कहलाता है इसे पी से व्यक्त करते हैं यह सदिश राशि है जिसकी दिशा सदैव ऋण आवेश से धन आवेश की ओर होती है।
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