cyclotron class 12 hindi || साइक्लोट्रोन

 साइक्लोट्रॉन [Cyclotron]

साइक्लोट्रॉन एक ऐसी विद्युत-चुम्बकीय युक्ति है, जो धनावेशित कणों को उच्च वेगों तक में त्वरित करने मे प्रयुक्त होती है। इसका आविष्कार नाभिकीय संरचना की खोज के लिए सन् 1934 में ई.ओ. लॉरेन्ज तथा एम.एस. लिविंग्स्टॉन ने किया था।

कार्यप्रणाली ➡

 रेडियो आवृत्ति दोलित्र लगभग 10 V विभवांतर तथा 10°Hz आवृत्ति का प्रत्यावर्ती विभवांतर उत्पन्न करता है। अतः 'Dees' के मध्य के भाग में उत्पन्न विद्युत क्षेत्र की ध्रुवता प्रत्येक अर्द्धआवर्त काल में परिवर्तित होती रहती है। इस समय में आवेशित कण Dee के अन्दर चुम्बकीय क्षेत्र के कारण अर्द्धवृत्त पूर्ण कर लेता है।

 जब कोई आवेशित कण आयन स्त्रोत से 'Dees' में प्रवेश करता है तो लम्बवत् चुम्बकीय क्षेत्र के कारण वृत्तीय पथ की गति करता है। माना किसी क्षण 1 पर D, धनात्मक तथा D, ऋणात्मक है, अतः धनायन D, में अर्द्धवृत्त पूर्ण करके विद्युत क्षेत्र के कारण D, की ओर त्वरित होता है तथा इसकी ऊर्जा में qV वृद्धि हो जाती है। कण को D, में गति करने में T / 2 समय लगता है।

 साइक्लोट्रॉन में प्रत्यावर्ती विभव की आवृत्ति इस प्रकार व्यवस्थित की जाती है कि जैसे ही आवेशित कण किसी Dee में अर्द्धवृत्त पूर्ण करता है प्रत्यावर्ती विभव की ध्रुवता परिवर्तित हो जाती है। कण D, में भी लम्बवत् चुम्बकीय क्षेत्र के कारण वृत्ताकार पथ की गति करता है। इस प्रकार एक चक्र में आवेशित कण दो बार चुम्बकीय क्षेत्र में गति करता है तथा उसकी ऊर्जा में 2qV वृद्धि हो जाती है। आवेशित कण की गति में कण का वेग निरन्तर बढ़ते रहने के कारण उसके वृत्ताकार पथ की त्रिज्या में भी वृद्धि होती रहती है, अतः प्रत्येक चक्र में लगा समय अर्थात् आवर्तकाल नियत बना रहता है।


साइक्लोट्रॉन में निरन्तर त्वरण के लिए आवेशित कण की आवृत्ति का मान 'Dees' के मध्य आरोपित प्रत्यावर्ती विभव की आवृत्ति के समान होनी चाहिए, इसे अनुनादी अवस्था कहते है। जब त्वरित आवेशित कण की त्रिज्या 'Dees' की त्रिज्या के समान हो जाए तो उसे किसी विक्षेपक प्लेट की सहायता से खिड़की या द्वारक w से किरण पुंज के रूप में बाहर निकाल लेते हैं।

 सिद्धांत ➡

साइक्लोट्रोन" इस सिद्धांत पर कार्य करती है कि यदि भारी धनावेशित कणों को, शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र का उपयोग करके, उच्च आवृत्ति के अपेक्षाकृत लघु प्रत्यावर्ती विभव द्वारा उत्पन्न विद्युत क्षेत्र में से जो चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् कार्यरत है, बार-बार गुजारा जाए तो कणों को अति ऊर्जा तक त्वरित जा सकता है। यहाँ चुम्बकीय क्षेत्र आवेशित कणों को वृत्तीय पथ पर गतिमान करता है, जबकि विद्युत क्षेत्र प्रत्येक आवृत्ति में इनकी ऊर्जा में वृद्धि करता है।

रचना ➡

साइक्लोट्रोन में दो अर्द्धवृत्ताकार (अंग्रेजी के D अक्षर की तरह) धातु के खोखले पात्र जिन्हें 'Dees' कहा जाता है, होते है। इन "Dees" की व्यास परस्पर समान्तर होती है, तथा अल्प अन्तराल पर स्थित होती है। D, तथा D, के मध्य उच्च आवृत्ति का प्रत्यावर्ती विभवांतर किसी रेडियो आवृत्ति दोलित्र की सहायता से आरोपित किया जाता है,

Cyclotron

 जो D, तथा D, के मध्य उच्च आवृत्ति का प्रत्यावर्ती विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करता है। "Dees" को निर्वातित प्रकोष्ठ में रखा जाता है। जिससे आयनों तथा वायु के अणुओं में टक्कर न्यूनतम हो जाए। धातु के दोनों Dees के अन्दर विद्युत क्षेत्र का मान शून्य होता है। यह सम्पूर्ण व्यवस्था शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करने वाले विद्युत चुम्बक के ध्रुवों के मध्य रखी जाती है। चुम्बकीय क्षेत्र 'Dees' के तल के लम्बवत् कार्य करता है।

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