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  ट्रांसफार्मर ➡

 एक ऐसी विद्युत युक्ति जिसकी सहायता से प्रत्यावर्ती धारा की वोल्टता को परिवर्तित किया जाता है। यह अन्योन्य प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है, इसे ट्रांसफार्मर कहते हैं।

  रचना ➡

इसमें आयताकार या अन्य आकार के नर्म लोहे का पटलित क्रोड होता है जो नर्म लोहे की पत्तियों को एक के ऊपर एक रखकर बनाया जाता है। इन  पत्तियों के मध्य कोई विद्युतरोधी पदार्थ होता है। इस पटलित क्रोड पर दो कुण्डलियाँ लपेटी गई हैं, ये विद्युत रूद्ध तांबे के तारों की बनी होती हैं।
जिस कुण्डली में प्रत्यावर्ती धारा तथा वोल्टता को निवेशित किया जाता है उसे प्राथमिक कुण्डली P तथा जिस कुण्डली में प्रत्यावर्ती धारा या वोल्टता प्राप्त की जाती है, उसे द्वितीयक कुण्डली S कहते हैं

✲ सिद्धान्त तथा कार्यविधि 

जब प्राथमिक कुण्डली में प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित की जाती है तो प्राथमिक कुण्डली से उत्पन्न चुम्बकीय फ्लक्स क्रोड | द्वारा द्वितीयक कुण्डली से सम्बद्ध होता है। नर्म लोहे के कारण चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ क्रोड में सीमित रहती हैं जिससे चुम्बकीय पलक्स का वायु में क्षरण बहुत कम होता है। प्राथमिक कुण्डली में प्रत्यावर्ती धारा के मान में निरंतर परिवर्तन होने से द्वितीयक कुण्डली से सम्बद्ध चुम्बकीय पलक्स के मान में भी लगातार परिवर्तन होता है जिससे फैराडे के नियमानुसार द्वितीयक कुण्डली में प्रेरित वि.वा.बल उत्पन्न होती है इसकी आवृत्ति प्राथमिक कुण्डली में प्रवाहित प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति के बराबर होती है।

ट्रांसफार्मर के प्रकार➡

(i) उच्चायी ट्रांसफार्मर➡

जब द्वितीयक कुण्डली में फेरों की संख्या N प्राथमिक | कुण्डली में फेरों की संख्या N से अधिक होती है तो निर्गत वि. वा.बल या वोल्टता V का मान निवेशी वोल्टता Vp से अधिक होता है। अतः द्वितीयक कुण्डली में धारा का मान / प्राथमिक कुण्डली में धारा 1 से कम हो जाता है, इस प्रकार के ट्रांसफार्मर को उच्चायी ट्रांसफार्मर कहते हैं। अर्थात् जब N > N तो Vs >V, और Is <Ip

(ii) अपचायी ट्रांसफार्मर 

जब द्वितीयक कुण्डली में फेरों की संख्या N प्राथमिक कुण्डली में फेरों की संख्या N से कम होती है तो निर्गत वोल्टता Np V का मान निवेशी वोल्टता V के मान से कम होता है। अतः P द्वितीयक कुण्डली में धारा का मान I प्राथमिक कुण्डली में धारा I, से अधिक हो जाता है, इस प्रकार के ट्रांसफार्मर को अपचायी ट्रांसफार्मर कहते हैं।

अर्थात् जब N < Np तो Vs <Vp और Is > Ip एक आदर्श ट्रांसफार्मर में ट्रांसफार्मर की प्राथमिक कुण्डली से द्वितीयक कुण्डली में ऊर्जा के हस्तान्तरण में ऊर्जा की कोई हानि नहीं होती तो प्राथमिक कुण्डली तथा द्वितीयक कुण्डली में शक्ति का मान भी समान होता है। ऐसे ट्रांसफार्मर की दक्षता 100% होती है। ट्रांसफार्मर की दक्षता

द्वितीयक कुण्डली के सिरों पर प्राप्त शक्ति प्राथमिक कुण्डली में निवेशित शक्ति - x100%

व्यावहारिक रूप में ट्रांसफार्मर में ऊर्जा की किसी न किसी रूप में क्षति होने से उसकी दक्षता शत प्रतिशत नहीं हो सकती। 

ट्रांसफार्मर में ऊर्जा की हानि निम्न प्रकार से हो सकती है।

(i) ताम्र हानि ⇒
ट्रांसफार्मर की प्राथमिक और द्वितीयक कुण्डलियाँ तांबे के तार की बनाई जाती है, इनका प्रतिरोध अल्प होता है परन्तु शून्य नहीं होता। अतः जूल प्रभाव से FR के बराबर शक्ति का क्षय होता है। इसे ताम्र हानि कहते हैं। इसे कम करने के लिए तांबे के मोटे तार की कुण्डली लेते हैं।

 (ii) चुम्बकीय फ्लक्स क्षरण के कारण हानि ⇒
 ट्रांसफार्मर में क्रोड के खराब अभिकल्पन या इसमें रही वायु रिक्ति के कारण प्राथमिक कुण्डली का समस्त चुम्बकीय फ्लक्स द्वितीयक कुण्डली से नहीं गुजरता है। अतः प्राथमिक तथा द्वितीयक कुण्डलियों को एक दूसरे के ऊपर लपेट कर पलक्स क्षरण को कम किया जाता है।

(iii) भंवर धारा हानि ⇒
 प्रत्यावर्ती धाराओं के कारण जब विद्युत फ्लक्स में आवर्ती परिवर्तन होता है तो क्रोड में भी वोल्टता प्रेरित होने से भंवर धाराएँ प्रवाहित होती हैं। इन भंवर धाराओं के कारण क्रोड में उष्मा के रूप में शक्ति का क्षय होता है। इस प्रभाव को कम करने के लिए क्रोड को पटलित किया जाता है। 
 
(iv) शैथिल्य हानि ⇒
प्रत्यावर्ती चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा क्रोड का चुम्बकन बार-बार उत्क्रमित होता है। चुम्बकन के प्रत्येक पूर्ण चक्र में चुम्बकन की आरोपित क्षेत्र के सापेक्ष पश्चता शैथिल्यता कहलाती है। शैथिल्य पाश का क्षेत्रफल प्रति चक्र प्रति एकांक आयतन शैथिल्य से ऊर्जा की हानि के समानुपाती होता है। इससे क्रोड में ऊष्मा के रूप में ऊर्जा की हानि होती है। इस क्षय को कम करने के लिए नर्म लोहे का क्रोड लेते हैं जिनके शैथिल्य पाश का क्षेत्रफल न्यून होता है। 
ट्रांसफार्मरों का उपयोग विद्युत शक्ति वितरण में, प्रतिबाधा सुमेलन में किया जाता है। श्रव्य आवृत्ति ट्रांसफार्मरों का उपयोग टेलीफोन, रेडियों टेलीफोन में तथा रेडियों आवृत्ति ट्रांसफार्मरों का उपयोग रेडियों संचार में किया जाता है। दूरस्थ स्थानों तक विद्युत शक्ति के संचरण के लिए अधिक वोल्टता पर कम मान की धारा प्रयुक्त करते हैं एवं उच्चायी ट्रान्सफॉर्मर का उपयोग करते है जिससे विद्युत शक्ति का ऊष्मा के रूप में क्षय (I²-R) होता है। 

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